June 20, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की सजा पर लगाई रोक..संसद सदस्यता होगी बहाल…फ़ैसले के बाद राहुल गांधी ने कहा है कि “चाहे जो कुछ भी हो, मेरा फ़र्ज़ वही रहेगा…आइडिया ऑफ़ इंडिया की हिफ़ाज़त.”

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सामना:- मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत देते हुए गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सजा पर रोक लगा दी है।अब राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील लंबित रहने तक सजा पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी को मैक्सिम दो साल की सजा दी गई।निचली अदालत ने ये कारण नहीं दिए कि क्यों पूरे दो साल की सजा दी गई।हाईकोर्ट ने भी इस पर पूरी तरह विचार नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा कि  राहुल गांधी की टिप्पणी गुड टेस्ट में नहीं थी. पब्लिक लाइफ में इस पर सतर्क रहना चाहिए।इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले दिलचस्प बताया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि हाईकोर्ट का फैसला बेहद दिलचस्प है।इस फैसले में ये बताया गया है कि आखिर एक सांसद को कैसे बर्ताव करना चाहिए।कोर्ट में सुनवाई के दौरान राहुल गांधी की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए।जबकि दूसरे पक्ष की तरफ से महेश जेठमलानी ने अपनी दलील रखी।राहुल गांधी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषक मुन सिंघवी ने सुनवाई के दौरान कहा कि जो सजा दी गई है वो बहुत कठोर है. मौजूदा समय में आपराधिक मानहानि न्यायशास्त्र उल्टा हो गया  है. मोदी समुदाय अनाकार, अपरिभाषित समुदाय है.उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पास मानहानि का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था. ऐसा मामला नहीं है कि कोई व्यक्ति व्यक्तियों के समूह की ओर से शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है. लेकिन व्यक्तियों का वह संग्रह एक ‘अच्छी तरह से परिभाषित समूह’ होना चाहिए जो निश्चित और दृढ़ हो और समुदाय के बाकी हिस्सों से अलग किया जा सके. इस तर्क का समर्थन करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई उदाहरण हैं. मोदी कई समुदायों में फैले हुए हैं. इस फ़ैसले के बाद राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि “चाहे जो कुछ भी हो, मेरा फ़र्ज़ वही रहेगा… आइडिया ऑफ़ इंडिया की हिफ़ाज़त.”

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल किसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व न होना क्या सजा पर रोक का कोई आधार नहीं है? कोर्ट ने कहा कि ये सजा सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं बल्कि पूरे संसदीय क्षेत्र को प्रभावित कर रही है. अगर कोई संसदीय क्षेत्र किसी सांसद को चुनता है तो क्या वो क्षेत्र बिना उसके सांसद को उपस्थिति का रहना ठीक है ? जब इस तरह के मामले में अधिकतम सजा दो साल दी गई है? जस्टिस गवई ने कहा कि क्या यह एक प्रासंगिक कारक नहीं है कि जो निर्वाचन क्षेत्र किसी व्यक्ति को चुनता है वह  गैर-प्रतिनिधित्व वाला हो जाएगा? ट्रायल जज ने अधिकतम 2 साल की सजा दी है. जब आप अधिकतम सज़ा देते हैं तो आप कुछ तर्क देते हैं कि अधिकतम सज़ा क्यों दी जानी चाहिए.ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई फुसफुसाहट नहीं. कोर्ट ने कहा कि आप न केवल एक व्यक्ति के अधिकार का बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार को प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवल वह सांसद हैं, यह सजा निलंबित करने का आधार नहीं हो सकता, लेकिन क्या उन्होंने दूसरे हिस्से को भी छुआ है? जज ने आगे कहा कि हाईकोर्ट के फैसले को पढ़ना बहुत दिलचस्प है. इस फैसले में बताया गया है कि एक सांसद को कैसे बर्ताव करना चाहिए.