छत्तीसगढ़ में ट्रेनों की हालत काफी दयनीय….रेलवे को नही पड़ रहा कोई असर…यात्रियों के साथ रेलवे के भरोसे रोजगार करने वाले भी हो रहे हैं परेशान

सामना:- वर्तमान में चार दर्जन से अधिक ट्रेनों के पहिये थमे हुए है।इसपर जो ट्रेनें चल रही है वे घण्टों लेटलतीफी से चल रही है।इसके चलते आम यात्री तो परेशान है ही।लेकिन रेलवे के अधीन अपना जीवन यापन करने वाले भी रेलवे के रवैय्ये से लम्बे समय से हलाकान है।कोरोना काल के बाद से रेलवे द्वारा जिस तरह ट्रेनों को रद्द किया जा रहा है उससे पूरे छत्तीसगढ़ के वासी परेशान और हलाकान है।रेलवे हर बार कोई ना कोई विकास कार्य का हवाला देकर हर सप्ताह दर्जनों ट्रेनें रद्द कर रहा है।इसका असर ना केवल आम यात्रियों पर पड़ रहा है।बल्कि अब तो रेलवे के अधीन रहकर व्यापार करने वाले रेलवे स्टेशन में संचालित छोटे छोटे स्टॉलों,कैंटीनों सहित अन्य छोटे बड़े व्यावसायिक संस्थानों पर पड़ने लगा है।सभी संचालक,मैनेजर व कर्मचारियों की माने तो रेलवे के अड़ियल रवैय्ये के चलते दुकानों से महीने का किराया तो दूर अब तो रोजी भी निकाल पाना मुश्किल होता जा रहा है।रेलवे जिस तरह ट्रेनों को रद्द कर रहा है उसी तरह दुकानदारों से किराया तो आधा नही लगा।वैसे भी रेलवे को दुनियादारी से कोई मतलब नही है उसी तरह रेलवे सभी से किराया पूरा वसूल रहा है।इसलिए सभी अब यही कह रहे है भारतीय रेलवे जिसे देश का धड़कन कहा जाता था अब तो वे धीरे धीरे धड़कना भी बन्द हो रहा है।इनके साथ ही ट्रेनें रद्द का बहुत ज्यादा असर स्टेशन में वर्षों से सेवाएं दे रहे कुलियों पर भी पड़ने लगा है।कुलियों की माने तो वे लोग कोरोना काल के समय से परेशान है।ना तो सरकार इनके लिए कुछ कर रही है ना ही रेलवे ही इनपर कोई ध्यान दे रहा है।इसी तरह रेलवे स्टेशन के बाहर से सवारी ढोने वाले ऑटो चालकों के जन जीवन पर भी ट्रेनों के रद्द व लेटलतीफी का प्रभाव बहुत जबरदस्त पड़ा है।वर्तमान स्थिति में आलम ये है कि सभी रोजी रोटी के लिए तरस रहे है।कैंटीन चालक,कुलियों और ऑटो चालकों की माने तो कि रेलवे का एक ही उद्देश्य केवल अडानी के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मालगाड़ी चलाना और हो भी वही रहा है क्योंकि जोनल स्टेशन के हर प्लेटफार्म के ट्रेक पर मालगाडियां ही भारी संख्या में नजर आती है।यही वजह है कि ट्रेक के आभाव में ट्रेनों को रद्द करने के साथ जो ट्रेनें चल रही है उसे घण्टों तो आउटर में खड़े कर दिया जाता है।जिससे ट्रेनें लेटलतीफी से चलती है।बता दें कि ट्रेनें रद्द व लेटलतीफी जैसी गम्भीर समस्या एसईसीआर के सभी बड़े से लेकर छोटे स्टेशन तक इस समस्या से जूझ रहे है।भले ही कोरोना का असर देशभर से जरूर खत्म हो गया है लेकिन अब भी रेलवे के भरोसे अपना व्यापार करके जीवन यापन करने वालों के जीवन मे कोरोना ग्रहण बनकर मंडरा रहा है।ऐसा कहना इसलिए लाजमी है क्योंकि जिस तरह से रेलवे हर सप्ताह दर्जनों यात्री ट्रेनें रद्द कर रहा है।उससे आलम पुनः लॉक डाउन और कोरोना जैसे निर्मित हो रहे है।क्योंकि उस समय भी हालत बिल्कुल इसी तरह थे।एक तरफ रेलवे यात्री सुविधाओं के नाम पर ढकोसला कर रहा है और दावा कर रहा है कि यात्रियों से लेकर रेलवे से जुड़े सभी रोजगारों को फायदा मिल रहा है।वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।फिलहाल जरूरत है रेल प्रशासन को जल्द से जल्द रेलवे की बिगड़ी व्यवस्था में सुधार लाने की।
