पुजेरिपाली -रहस्यों से भरा गुप्तकाल का केंवटिन देउल मंदिर

1500 वर्ष पूर्व बने शिव मंदिर से जुड़ी हैं मान्यताएं और अनेक रहस्य
सामना – आज महा शिवरात्री है और इस पावन दिन पर लगभग 1500 वर्ष पूर्व बने प्रसिद्ध केेंवटिन देउल स्वयं भू शिव मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने दूर दराज से आते हैं।इस मंदिर से जुड़ी है अनेक जनश्रुतियां
रायगढ़ से तकरीबन 31से 32 किलोमीटर दूर सरिया के पास स्थित है महाशिव गुप्त की पंचधार नगरी शशिपुर यानी पुजेरिपाली। पुजेरिपाली अनेक कथाओं का समागम है जिसके साक्ष्य आज भी यहाँ मौजूद हैं।पुजेरिपाली में एक ऐसा प्रसिध्द मंदिर है जो धर्मिक,पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से प्रचलित है। मंदिर है केंवटिन देउल स्वयं भू शिव मंदिर
गुप्तकाल में बना यह मंदिर
केंवटिन देउल मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह लगभग1500 वर्ष पूर्व बना है। गुप्तकाल से अब तक खड़ा यह मंदिर यहाँ के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है।लाल बलुआ पत्थर से बने इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएँ और कई ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हैं। पुरातन संस्कृति की बेमिसाल धरोहर इस मंदिर को देखने पर लगता है जैसे इसकी हर ईंट अपनी सुंदरता को कहानी को बिना कुछ कहे ही बयां करती हैं जिसमे कई कलाकृतियां बनी हुई हैं जो समय की मार से धुंधली हो चुकी हैं इसलिए इसे पहचान पाना अब मुश्किल है।

भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में मंदिर का निर्माण किया
इस मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं की अगर बात करें तो उसके अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी ने एक रात में ही इस मंदिर का निर्माण किया था। गांव के लोगों का मानना है कि जिस रात भगवान विश्वकर्मा इस मंदिर का निर्माण कर रहे थे एक केंवट समाज की महिला द्वारा अलसुबह ढेकी में चावल कूटने की आवाज से उन्हें अलसुबह का आभास हुआ और उन्होंने इसे अधूरा ही छोड़ निर्माण रोक दिया । यही कारण माना जाता है कि इस मन्दिर के ऊपरी भाग में जो गुम्मत बना है वो तब से अधूरा ही है।
लुप्त हो जाता है जलाभिषेक का पानी
इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ लिंग स्वरूप में विराजमान हैं इस अद्भुद शिवलिंग से भी कई रहस्य जुड़े हैं ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर इसका पानी पातालगामी हो जाया करता है,सारा जल इसमें ही समा जाता है। यानी जलाभिषेक का जल बहता हुआ नजर नहीं आता, इस शिवलिंग का जल आखिर जाता कहां है यह जानने के लिए शिवलिंग के चारों ओर मिट्टी और कपड़े से पाटकर जलाभिषेक किया गया ताकि इसमें जल ठहर सके लेकिन,श्रद्धालुओं द्वारा 3 घंटे तक लगातार जल चढ़ाने पर भी इस शिवलिंग को नहीं भरा जा सका पिछले 18 वर्षों से महाशिवरात्रि पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने आते हैं लेकिन आज तक किसी को नहीं पता कि आखिर इसका जल जाता कहाँ है।

मस्तिष्क गंगा
शिवलिंग के ऊपरी भाग में सदैव जल भरा हुआ रहता है ।जिस तरह भगवान भोलेनाथ ने अपने मस्तिष्क पर माँ गंगा धारण की है ठीक उसी प्रकार यह माना जाता है कि यहाँ माँ गंगा विराजमान है इसलिए इसे मस्तिष्क गंगा के नाम से जाना जाता है।इसके अलावा मंदिर में विराजीं हैं माँ लोटाहसिनी जिसे माँ चंद्रसाहिनी की छोटी बहन माना जाता है।

भैरव बाबा के पैरों के निशान
इसी मंदिर के बाहर भैरव मन्दिर स्थापित है जहाँ राजा और रानी के पैर के निशान भी देखे जा सकते हैं। उसे मंदिर के ही मुख्य द्वार के सामने रखा गया है।हालांकि इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह किस राजा,रानी के पैरों के निशान है।यहाँ रखी कुछ अन्य मूर्तियां भी हैं जो खंडित हो चुकी हैं इसलिए इसे पहचान पाना मुश्किल है। इसी जगह पर पैर के निशान सी आकृती बनी हुई है यहाँ के लोगों का मानना है कि यह भैरव बाबा के पैर के निशान हैं।
कभी ना सूखने वाला अनोखा कुआं
इस मंदिर के पास कुछ कदम की दूरी पर स्थित है एक अनोखा कुंआ। तकरीबन 12 फ़ीट गहरे इस कूँए के बारे में कहा जाता है कि इस कूँए का पानी कभी नहीं सूखता। लोगों का मानना है कि जब 1980 में यहाँ सूखा पड़ा था तब यहाँ के सभी तालाबों, हैंडपम्प और नल का पानी सूख गया था लेकिन उस वक़्त भी इस कूँए का पानी नहीं सूखा। श्रद्धालु जब मंदिर दर्शन को आते हैं तो इस अनोखे कुएं का पानी जरूर पीते है।
