June 20, 2025

सोच स्वर्ण की वोट पिछडावर्ग का!….पिछड़ा वर्ग के कांग्रेस ज़िला अध्यक्ष को हटाना पिछड़ा वर्ग की बाहुल्यता को करारा तमाचा….

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सामना न्यूज़:–वैसे तो कांग्रेस पार्टी खुद को सर्वधर्म समभाव की पार्टी कहती है और संख्या के आधार पर नेतृत्व प्रदान करती है किंतु ज़िला जांजगीर चाम्पा के मामले मे कांग्रेस मे नेतृत्व परिवर्तन फैसला भविष्य मे भारी न पड़ जाए। जिला जांजगीर चांपा में कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष व जिला प्रभारी दोनो स्वर्ण वर्ग से हैं। पिछडा वर्ग की 60% आबादी वाला ज़िला अब कांग्रेस में स्वर्ण नेतृत्व के सहारे आगे बढ़ने की जुगत मे है। गौरतलब हो कि डेढ़ वर्ष पूर्व ज़िला कांग्रेस कमेटी जांजगीर चांपा अध्यक्ष पद पर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव ज़िले के सरहर निवासी डॉ.चौलेश्वर चंद्राकर को कमान दी गई थी जिस समय उन्हें जिम्मेदारी दी गई थी वह समय वैश्विक महामारी कोरोना काल का था जिसे चुनौती पूर्ण स्वीकार करते हुए डॉक्टर चंद्राकर ने ज़िले में खूब मेहनत की। कांग्रेस का कोई भी कार्यक्रम उनसे नहीं किसी चूका वहीं अनेकों रचनात्मक कार्यक्रमों से उन्होंने पूरे जिले के कांग्रेसियों को प्रभावित किया। किंतु पिछड़ा वर्ग से चयनित मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थक माने जाने वाले डॉक्टर चंद्राकर के खिलाफ कुछ तत्वों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी ना हो पाने के भय से अभियान चला रखा था और आख़िरकार इस अभियान में उन्हें कामयाबी भी मिल गई । जिला कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी नहीं बनाये जाने का ठीकरा कॉंग्रेस जिलाध्यक्ष चौलेश्वर चंद्राकर पर फोड़ा गया जबकि ज़िले के कद्दावर नेता जिन्होंने कभी भी ज़िले में दो से अधिक सिटी दिला पाने में अपनी ताकत नहीं दिखायी इसे राजनीतिक समीक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो ज़िला प्रभारी अर्जुन तिवारी भी कार्यकारिणी बनवाने में असफल रहे जबकि डॉक्टर चंद्राकर द्वारा ज़िला कार्यकारिणी की सूची प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भेजी जा चुकी थी जिसे जारी होने नहीं दिया गया ताकि पूरा ठीकरा जिला कांग्रेस कमेटी के निवृतमान अध्यक्ष डॉ चंद्राकर पर फोड़ा जा सके यह सोची समझी साजिश प्रतीत होती है।

जिला जांजगीर चांपा की राजनीति डॉ चरणदास महंत के इर्द -गिर्द नज़र आती है।ज़िले में भाजपा और बसपा के साथ बंधुत्व की भावना से चलने वाले डॉ महंत पर दबी जुबान यह भी आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने व्यक्तिगत लाभानुसार भाजपा व बसपा के उम्मीदवार तय करवाते हैं वैसे तो डॉ. महंत पिछड़ा वर्ग से आते हैं और इस बार अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र को सौंपने की तैयारी मे है किंतु इनकी राजनीति स्वर्णों के बीच अधिक देखी जा सकती है और गैर छत्तीसगढ़िया के लिए कम। ऐसे में किस मुंह से पिछड़ों से वोट माँगने जाएंगे उन पर यह एक प्रश्नचिन्ह है और यह भी चर्चा है कि कभी भी पिछड़ों की लड़ाई उनके द्वारा नही लड़ी गई यह आरोप उन पर उन्हीं के वर्ग जाति के लोग लगाते रहे हैं जिला जांजगीर चांपा में जिला अध्यक्ष पिछडावर्ग से बदलकर स्वर्ण वर्ग को दिए जाने से कहीं न कहीं पिछड़े वर्ग मे नाराज़गी देखी जा रही है किंतु कांग्रेस पार्टी इसे सर्वधर्म समभाव सर्ववर्ग समानता की बातकर पिछड़ों की आम भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। “सोच स्वर्ण की वोट पिछडावर्ग का” जांजगीर चांपा की राजनीति में पिछड़ा वर्ग का बाहुल्य होना लोकतांत्रिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है किंतु यहां पिछड़ा वर्ग पिछड़े वर्ग का दुश्मन है इन्हें अलग-अलग जातियों में बांट कर नेता अपनी राजनीति रोटी सेंकते हैं। ऐसे नेताओं को यह सोचना होगा कि वह स्वर्ण की नाव में चढ़कर पिछड़ों को अपना खेवनहार किस मुंह से बनाना चाहते हैं??