धूमधाम से निकली रियासतकालीन भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा…पहंडी पूजा के साथ रथारूढ़ हुए महाप्रभु.. राजपरिवार द्वारा किया गया छेरापहरा…शनिवार को पहुंचेंगे गुंडिचा मौसी के घर…

सामना न्यूज़:-रायगढ़:-रियासत काल से शहर के राजापारा स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में पुरी की तर्ज पर रथयात्रा उत्सव और पूजन को मनाने की परंपरा बीते 115 सालों से चली आ रही है।हालांकि विगत 2 वर्षों से कोरोना वायरस के प्रकोप ने भगवान जगन्नाथ के रथ के पहियों को रोक दिया था।भगवान जगन्नाथ शाम करीब छह बजे भगवान को मौसी के घर ले जाने की तैयारी शुरू की गई। भगवान जगन्नाथ के पंद्रह दिनों की अस्वस्थता एवं उनके उपचार के पश्चात आज कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को अपने नवयौवन वेष में दर्शन दिए। जहां उन्हें काजल लगाया गया एवं उनका फूलों से श्रृंगार किया गया एवं छप्पन भोग का प्रसाद अर्पित किया गया।
वर्षों से यह परंपरा रही है कि रथयात्रा के समय जब भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा व बलराम को रथ में सवार करने के लिए ले जाया जाता है, तब राज परिवार के सदस्य अगुवाई करते हुए आगे-आगे झाडू लगाते हैं। इसी परंपरा का निर्वहन आज भी किया गया।
शाम 5 बजे भगवान का पहंडी कर रायगढ़ राजपरिवार द्वारा छेरापहरा कर मोतीमहल के सामने भगवान को रथारूढ किया गया।धार्मिक कार्यक्रम के अन्तर्गत कल 2 जुलाई को रथयात्रा नगर भ्रमण के लिए जायेगी एवं 9 तारीख दशमी को पैलेस रोड होते हुए वापिस आयेगी। 10 तारीख देवशयनी एकादशी को महाप्रभु का सोना भेष होगा जिसमें भगवान वर्ष में इसी दिन अपने पूरे अलंकारों एवं आयुधों के साथ दर्शन देंगे तथा मंदिर के अंदर जाने के पूर्व लक्ष्मी जी के साथ के प्रसंगों को उड़िसा के कलाकारों द्वारा सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया जायेगा। भगवान के रथारूढ़ होने के बाद एक दिन राजमहल में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि एक दिन राजपरिवार भगवान की सेवा करता है उसके बाद अगले दिन गुंडिचा मौसी के यहां भगवान को ले जाया जाता है। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए रथ उत्सव आज से शुरू हुआ जिसमें राजपरिवार से छेरा पहरा कर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा को रथारूढ़ किया गया है। कल रथ नगर भ्रमण के साथ गुंडिचा मंदिर पंहुचेगा। तत्पश्चात भगवान मंदिर के भीतर जायेंगे एवं 6 माह विश्राम करेंगे एवं कार्तिक एकादशी देव उठनी एकादशी को फिर जागेंगे।भगवान की तीनों प्रतिकों को रथ के पास पहुंचाया गया। परिक्रमा करते हुए जगन्नाथ स्वामी, सुभद्रा व बलराम को रथ में सवार किया गया। इस दौरान पूरा क्षेत्र भगवान के जयघोष से गूंज रहा था। राज महल के अलावा शहर के अन्य जगहों में भी रथयात्रा आयोजन किया गया।
विशेष पूजा :-महाराजा भूपदेव सिंह का एक ही बेटा था। राज परिवार में ऐसी मान्यता थी कि महाराजा को उनके बड़े बेटे मुखाग्नि नहीं दे सकते थे इसलिए राजा ने दूसरे पुत्र की कामना की, जिसके बाद जगन्नाथ भगवान की कृपा से उनको दूसरा पुत्र गणेश चतुर्थी के दिन चक्रधर सिंह प्राप्त हुए।पुत्र प्राप्ति के बाद 1905 के उस दौर में महाराजा भूपदेव सिंह ने जगन्नाथ भगवान के लिए मंदिर का निर्माण कराया और तब से रायगढ़ में यह विशेष पूजा चली आ रही है।
