चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात..शहर में बन चुके हैं गौठान..फिर क्यों नहीं मिला शहर को आवारा पशुओं से निदान…

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात….ये लाइन सभी ने सुनी होगी इन तस्वीरों को देखकर यह लाइन आपको समझ में आ ही गई होगी और पहला सवाल जो सभी के ज़ेहन में आता है वो ये कि जब लाखों की लागत से शहरी गौठान बनाया गया है तो फिर मवेशी सड़कों पर क्यों है? क्या गौठान का निर्माण सिर्फ चारा घोटाले के लिए बनाया गया है क्योंकि हमारा शहरी गौठान किस हालत में है और वहाँ रह रहे मवेशी किन परिस्थितियों में है ये बात किसी से छुपी नहीं है। वहां रह रहे मवेशी चारे पानी के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। अगर गौठनों की तस्वीर आप देंखेंगे तो यही कहेंगे कि इससे बेहतर तो सड़कों पर ही मवेशियों की स्थिति सही है लेकिन जब मवेशियों को सड़कों पर ही रहना था तो लाखों की लागत से गौठनों का निर्माण कराया ही क्यों गया?
यह नज़ारा शहर के सड़कों चौक चौराहों पर आम हो गया है। सड़कों पर इतने मवेशियों का जमावड़ा सडक़ हादसों को निमंत्रण दे रहा है। जब गौठनों की व्यवस्था की गई है तो ये मवेशी सड़कों पर क्यों नज़र आ रहे हैं? शहरी गौठान क्या केवल पशुओं की बदहाल स्थिति के लिए बनाए गए हैं?


