दानवीर स्व.सेठ किरोड़ीमल…जयंती.. रायगढ़ सदैव उनका ऋणी रहेगा..

सामना न्यूज़:-रायगढ़:- आधुनिक रायगढ़ के शिल्पकार,नगर को स्कूल कॉलेज,कॉलाेनी, कुआं,धर्मशाला, मंदिर चिकित्सालय जैसी सौगात देने वाले स्व.सेठ किरोड़ीमल जी ने आजादी के बाद छतीसगढ़ के रायगढ़ को पूरे भारत मे एक पहचान दी।आज उनकी जयंती है उनका जन्म 15 जनवरी 1882 को हिसार (हरियाणा) में हुआ था।आधुनिक रायगढ़ के इस महान शिल्पी का निधन 2 नवम्बर 1965 को हुआ था, लेकिन उनके अविस्मरणीय योगदान की वजह से वे आज भी सभी के ज़ेहन में जीवित है।ऐसे महान धर्मावलम्बी सेठ किरोड़ीमल जी को कभी भुलाया भी नहीं जा सकता,रायगढ़ उनका सदैव ऋणी रहेगा।स्व सेठ किरोड़ीमल जी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे बावजूद इसके उन्होंने व्यवसाय की बुलंदियों को छुआ क्योंकि उनका जीवन अनुशासित था।अपने बुद्धि कौशल,कठिन परिश्रम तथा अनुशासन के बल पर स्व सेठ किरोड़ीमल जी ने अकूत धन कमाया और उस धन को समाज व जनहित की सेवा के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य में ही लुटा दिया।1946 में अस्तित्व में आए उनके धर्मादा ट्रस्ट की शुरुआत उन्होंने 30 लाख रुपये नगद और अपनी सम्पत्तियों के साथ की थी। रायगढ़ के हर कोने में उनकी यादगार इमारतें आज भी खड़ी हैं।
शहर में नटवर हाई स्कूल,पॉलटेक्निक कॉलेज,डिग्री कॉलेज, पुस्तकालय, जिला चिकित्सालय,बालमंदिर विद्यालय, बालसदन,गौरी शंकर मंदिर,बूजी भवन धर्मशाला,भरत कूप और बावली-कुआं सहित उन्होंने कई कालोनियों का निर्माण कराया । इतना ही नहीं रायगढ़ शहर को औद्योगिक नगर के रूप में पहचान दिलाने वाला प्रदेश का प्रथम जूटमिल उन्होंने ही रायगढ़ में स्थापित किया।
रायगढ़ में ही नहीं उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों जैसे दिल्ली, मथुरा,मेंहदीपुर,(राजस्थान), भिवानी(हरियाणा),पचमढ़ी,रायपुर,किरोड़ीमल नगर आदि नगरों में अनेक स्कूल, धर्मशाला एवं रैन बसेरा मन्दिर का निर्माण कराया जो कि उनके लोकापकारी कार्यों का जीवन्त उदाहरण है। रायगढ़ के प्रसिद्ध झूला- मेले की शुरुआत भी उन्होंने गौरीशंकर मंदिर से की थी।
अनुशासित जीवन शैली:–मिली जानकारी के अनुसार:-15 सितंबर1956 को स्थानीय किरोड़ीमल पोलटेक्निक कालेज का उद्घाटन समारोह था जिसका उद्घघाटन प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद द्वारा होना था लेकिन महामहिम को कार्यक्रम में पहुचने में देर हो गई इधर स्व.सेठ जी के भोजन का वक़्त हो गया था सेठ जी ने आयोजन की ज़िम्मेदारी अन्य लोगो को सौंपी और भोजन के लिए रवाना होने लगे।वे मंच से उतर भी नहीं पाए थे कि तभी महामहिम का काफिला पहुंच गया।स्व सेठ जी ने महामहिम का स्वागत किया और उसके बाद भोजन के लिए रवाना हो गए।वे नहीं रुके ..क्योंकि उनके भोजन का वक़्त हो चुका था और उनकी जीवन शैली बेहद अनुशासित थी।…………स्व.सेठ किरोड़ीमल के निःस्वार्थ योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता ना ही इतने शब्दों में उनके परोपकार की व्याख्या की जा सकती है।आज उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक नमन….💐💐

