2023 में वापसी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती…परिवर्तन की उम्मीद के बीच क्या भाजपा नए चेहरों पर खेलेगी दांव..?

सामना न्यूज़:–रायगढ़:-छत्तीसगढ़:- प्रदेश में 15वर्षों तक सत्ता चलाने वाली भाजपा इन दिनों बेहद लचर नज़र आ रही है क्योंकि वर्तमान दौर उसके लिए वह संक्रमण काल है,जहां उसे विरोधियों से लड़ने की चुनौती से पहले अपनों से ही लड़ने की चुनौतियां घेरे हुए है। 2018 से लेकर अब तक (लोकसभा चुनाव को छोड़कर) चार उपचुनाव, तीन बार नगरीय निकाय चुनाव और पंचायतों के चुनाव में भी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है।छत्तीसगढ़ में 90 सीटों में से मात्र 14 सीटों पर सिमटी भाजपा के लिए सत्ता वापसी करना वैसे ही एक बड़ी चुनौती थी और उस पर ज़िले में भाजपा की छवि महिलाओं के कथित शोषण से जो धूमिल हुई उसे सुधारना उस बड़ी चुनौती में और शामिल हो गया..ऐसे में भाजपा को 2023 में प्रदेश व ज़िले में अपनी वापसी करने के लिए आत्ममंथन.. सक्रियता.. और गुटबाजी से ऊपर उठने की ज़रूरत है क्योंकि वर्तमान विधायक प्रकाश नायक की जीत उस दौर में भाजपा की गुटबाजी और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी का ही परिणाम थी हालांकि किसी भी दल में गुटबाजी होना आम बात है लेकिन भाजपा में अपने ही अलग अलग अनेक धड़े हैं जो साफ़तौर में देखे, समझे व महसूस किए जा सकते हैं जो समय समय पर पार्टी की परेशानियों का सबब बन जाते हैं।
सुस्त विपक्ष की भूमिका:- 2018 में मिली हार के बाद भाजपा को वापसी के लिए ज़रूरत थी सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाने की लेकिन बावजूद इसके जनता और विकास के मुद्दे पर मुखर होकर लड़ने वाली भाजपा अपनी ही गुटबाज़ी,आरोप-प्रत्यारोप और निष्काषन में ही सिमट गई लिहाज़ा आज जनता के बीच भाजपा की छवि सुस्त विपक्ष की बन चुकी है जिसे तोड़ने उसे केवल बैठकों के दौर से ऊपर उठकर अपने जवाबदेही तय करने की जरुरत है।सूत्रों की मानें तो भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने अपने छत्तीसगढ़ दौरे की जो रिपोर्ट संगठन को सौंपी है उसमें बदलाव की ज़रूरत पर बल दिया गया है क्योंकि ज़्यादातर ज़िलों में भाजपा का प्रदर्शन बतौर विपक्ष संतोषजनक नहीं है लिहाज़ा चुनाव से पहले संगठन में परिवर्तन की उम्मीद जताई जा रही है।
भाजपा नए चेहरे के साथ लड़ेगी चुनाव:-सूत्रों के मानें तो सत्ता वापसी के लिए भाजपा नए चेहरों पर दांव खेलेगी! विगत दिनों भाजपा में चले सियासी घटनाक्रम में जिस तरह से भाजपा ज़िले में दागदार हुई है उसे सुधारने नए व साफ़ छवि वाले क़िरदार को मैदान में उतारने की ज़रूरत है और भाजपा के पास नए व युवा चेहरों की कमी नहीं है लेकिन विश्वासघात के चक्र में उलझी भाजपा के लिए सर्वमान्य चेहरा तलाशना इतना आसान भी नहीं है। मैदान में कई नए,युवा व वरिष्ठ चेहरे हैं इसलिए भविष्य में किस चेहरे पर दांव खेला जाएगा यह फ़िलहाल स्पष्ट नहीं है।
कांग्रेस और भाजपा का भाईचारा:-सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन वर्तमान परिवेश में रायगढ़ जिले में यह बात फिट बैठती है जहां सत्ता पक्ष विपक्ष के किसी भी मुद्दे पर कहने से परहेज़ करती नज़र आ रही है तो वहीं विपक्ष में बैठी भाजपा भी अपनी कमियों के कारण चुप्पी साधे सुस्त हो चुकी है ऐसे में दोनों ही दल:- यह उनका आपसी मामला है कहकर मौन धारण किए हुए हैं। ऐसे में सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि शहर में पक्ष और विपक्ष भाईचारे की राजनीति कर रहे हैं। जिसका खामियाजा दोनों ही दलों को उठाना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे में हताश जनता तीसरे विकल्प को चुनने में परहेज नहीं करती। बहरहाल 2023 की राह भाजपा के लिए आसान नहीं है… क्योंकि पार्टी के लिए ज़िले व प्रदेश में अपनी वापसी करने जनता के बीच फिर से विश्वास स्थापित करना बड़ी चुनौती है।
