राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस माताओं के स्वास्थ्य से नहीं होना चाहिए समझौता..गर्भवती महिलाएं पानी का सेवन लगातार करें: डॉ.टी.के साहू…


सामना न्यूज़:-रायगढ़:-सोमवार को जिले में राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया गया | सन 2003 से हर साल 11 अप्रैल को भारत में राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे भारत सरकार का उद्देश्य है कि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जाए ताकि प्रसव के दौरान या बच्चे को जन्म देने के कारण किसी भी महिला की मौत न हो। भारत में अभी भी प्रसव के दौरान या बच्चे के जन्म के कारण हुई जटिलताओं के चलते कई मौतें होती है।

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के जिला नोडल अधिकारी और आरएमएनसीएचए के प्रभारी डॉ. राजेश मिश्रा कहते हैं कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार जिले में वर्ष 2015-16 के सापेक्ष लिंगानुपात 985 से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 1,013 हुई है। बेहतर सैनिटेशन सुविधा का उपयोग करने वाले परिवारों का प्रतिशत 28.8 से बढ़कर 66.3 प्रतिशत हुई है। संस्थागत प्रसव 66.8 प्रतिशत से बढ़कर 87.7 प्रतिशत हो गया है। ऑपरेशन द्वारा प्रसव में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। यह दर पहले 8.2 प्रतिशत थी अब 18.9 प्रतिशत हो गई है। निजी अस्पताल में ऑपरेशन द्वारा बच्चे की जन्म की दर 35.8 प्रतिशत से बढ़कर 61.3 प्रतिशत तक हो गई है। बारह से 23 महीने के बच्चों द्वारा पोलियो की तीनों की खुराक लेने की दर भी बढ़ी है जो एनएफएचएस-4 में जहां 74 फीसदी थी वह अब एनएफएचएस-5 में 90 फीसदी हो गई है।


महिलाओं की प्रसव पूर्व एवं बाद में जांच सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क है। उन्हें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन की गोलियां मुफ्त में दी जाती है। गर्भ से संबंधित हर जांच उन्हें मुफ्त में मुहैया कराई जाती है। नर्स, मितानिन हर गर्भवती-शिशुवती महिला के घर-घर जाकर उनकी जांच और जरूरतों को पूरा करती है। यह सारी कवायद इसलिए की हम एक सुरक्षित और बेहतर मातृत्व समाज को दे सकें।

महिलाएं किसी भी समाज की मजबूत स्तंभ
मेडिकल कॉलेज की पैथोलॉजिस्ट डॉ. किरण भगत ने कहा, “महिलाएं किसी भी समाज की मजबूत स्तंभ होती हैं। जब हम महिलाओं और बच्चों की समग्र देखभाल करेंगे। तभी देश का सतत विकास संभव है। एक गर्भवती महिला के निधन से ना केवल बच्चों से मां का आंचल छिन जाता है, बल्कि पूरा परिवार बिखर जाता है। अशिक्षा, जानकारी की कमी, समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कुपोषण, कच्ची उम्र में विवाह, बिना तैयारी के गर्भधारण आदि कारणों की वजह से मां बनने का खूबसूरत अहसास कई महिलाओं के लिए जानलेवा और जोखिम भरा साबित होता है। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस को इसलिए मनाए जाने का फैसला किया गया। क्योंकि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जाए। ताकि प्रसव के दौरान या बच्चे को जन्म देने के कारण किसी भी महिला की मौत न हो।”

प्रसव के पहले और बाद खानपान पर दें विशेष ध्यान:-मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. टीके साहू बताते हैं, “महिलाओं को प्रसव से पहले अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। खाने में प्रोटीयुक्त भोजन, फोलिक एसिड और आयरन की प्रचुरता होनी चाहिए। गर्मी के मौसम में गर्भवती और शिशुवती महिला के शरीर में पानी की कमी नहीं होने देना चाहिए। प्रसव के बाद भी खानपान का विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि यह मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। स्तनपान मां और शिशु दोनों के लिए लाभकारी है। कैल्शियम व आयरन की पूर्ति आवश्यक है। इसलिए दूध, फल, मखाने, ड्राईफ्रूट प्रसव के बाद लेते रहना चाहिए। बाहर की चीजें जैसे कोल्ड ड्रिंक, जंक फूड आदि को नहीं लेना चाहिए। इसका दुष्प्रभाव शिशु पर पड़ता है। प्रसव यानी डिलिवरी के बाद नई मां का ध्यान रखना उतना ही जरूरी है। जितना प्रसव से पहले गर्भावस्था के दौरान।“
खुद को स्वस्थ कैसे रखें यह हो लक्ष्य
डॉ. टीके साहू ने आगे बताया, “प्रसव के बाद हर वक्त थकान महसूस करना भी बेहद सामान्य सी बात है। याद रखें कि इस दौरान आपके शरीर ने काफी कुछ झेला है। आपको प्रसव की तकलीफ से भी उबरना है। इतना ही नहीं प्रसव के बाद होने वाले हार्मोनल असंतुलन की वजह से आपको उदासीनता और मूड स्विंग भी हो सकता है। शिशु के जन्म के तुरंत बाद आपको अपना वजन घटाने की चिंता करने की जरूरत नहीं। क्योंकि इस दौरान आपका मुख्य लक्ष्य यह होना चाहिए कि आप खुद को स्वस्थ कैसे बनाए रखेंगी।पोस्ट-नेटल चेकअप एक अच्छा मौका है। उस दौरान आप अपनी रिकवरी और शिशु की देखभाल से जुड़े कई सवाल डाक्टर से पूछ सकते हैं। इसीलिए सभी जांचें ज़रुर कराएं।“
